शनिवार, 3 अप्रैल 2010

दूर पिया का गाँव है 

दूर बहुत  दूर सखि  मेरे  पिया  का गाँव है
राह में ना कोई पनघट ना पीपल की छाँव  है

सावन की ऋतू जब  जब  है  आई
डसी है  दिल को  और भी  तन्हाई
पिया क्या कभी मेरी याद ना आई
आने में फिर काहे इतनी देर लगाईं
ठहर सा गया जैसे मन का बहाव है
दूर बहुत दूर मेरे पिया का गाँव है

जब से गए है मेरे पिया  परदेस
ना कोई चिट्ठी ना कोई सन्देश
कुछ तो खबर दो कब आओगे
इस बिरहन को कितना तड़पाओगे 
जीवन में जैसे आ गया कोई ठहराव है
दूर बहुत  दूर मेरे पिया का गाँव है

क्या युहीं गुज़रेगी अब सारी उमरिया
ना दिन होंगे सुहाने और ना ही रतियाँ
ताना मारती है अब तो सारी सखियाँ
दिल का गया करार और आँखों से निंदिया
आ जाओ पिया जीवन में बढ़ रहा उलझाव है
दूर   बहुत   दूर  सखि मेरे पिया का गाँव है 
राह में ना कोई पनघट ना पीपल की छाँव है




   

5 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

नरेश चन्द्र बोहरा ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद संजयजी ; आपकी प्रतिक्रियाएं मुझे और अच्छा लिखने की प्रेरणा देती रहेगी . आज फिर से समय आ गया है कि हर कोई टेलीविजन कि दुनिया से निकलकर स्वस्थ साहित्य की तरफ लौटे . मेरा यही प्रयास है . " नाशाद "

manjul ramdeo ने कहा…

wah wah village ki yad dila di aapne jo bachpan m dekha tha kabhi

Unknown ने कहा…

नरेशजी !!!! ग़ज़ल के बाद कविता भी . भाई दोनों विधाओं पर सामान अधिकार रखना बड़ा मुश्किल होता है . लगता है आपके लिए कुछ भी मुश्किल नहीं है .क्या पता कल को आप दोहे और छंद भी लिखने लगें ., बधाई भाई बधाई