दूर पिया का गाँव है
दूर बहुत दूर सखि मेरे पिया का गाँव है
राह में ना कोई पनघट ना पीपल की छाँव है
सावन की ऋतू जब जब है आई
डसी है दिल को और भी तन्हाई
पिया क्या कभी मेरी याद ना आई
आने में फिर काहे इतनी देर लगाईं
ठहर सा गया जैसे मन का बहाव है
दूर बहुत दूर मेरे पिया का गाँव है
जब से गए है मेरे पिया परदेस
ना कोई चिट्ठी ना कोई सन्देश
कुछ तो खबर दो कब आओगे
इस बिरहन को कितना तड़पाओगे
जीवन में जैसे आ गया कोई ठहराव है
दूर बहुत दूर मेरे पिया का गाँव है
क्या युहीं गुज़रेगी अब सारी उमरिया
ना दिन होंगे सुहाने और ना ही रतियाँ
ताना मारती है अब तो सारी सखियाँ
दिल का गया करार और आँखों से निंदिया
आ जाओ पिया जीवन में बढ़ रहा उलझाव है
दूर बहुत दूर सखि मेरे पिया का गाँव है
राह में ना कोई पनघट ना पीपल की छाँव है
शनिवार, 3 अप्रैल 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
5 टिप्पणियां:
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
बहुत बहुत धन्यवाद संजयजी ; आपकी प्रतिक्रियाएं मुझे और अच्छा लिखने की प्रेरणा देती रहेगी . आज फिर से समय आ गया है कि हर कोई टेलीविजन कि दुनिया से निकलकर स्वस्थ साहित्य की तरफ लौटे . मेरा यही प्रयास है . " नाशाद "
wah wah village ki yad dila di aapne jo bachpan m dekha tha kabhi
नरेशजी !!!! ग़ज़ल के बाद कविता भी . भाई दोनों विधाओं पर सामान अधिकार रखना बड़ा मुश्किल होता है . लगता है आपके लिए कुछ भी मुश्किल नहीं है .क्या पता कल को आप दोहे और छंद भी लिखने लगें ., बधाई भाई बधाई
एक टिप्पणी भेजें