भूली बिसरी यादें
नज़रों में तो था मगर दिल से दूर था
वो मेरा होकर भी कभी मेरा ना था
बे चराग गलियों में उसकी आवाजें तो थी
दरीचों से झाँका मगर गलियों में कोई न था
उसके जाने के बाद दिल तो बहुत रोया
मगर आंखों में उसकी एक आंसू ना था
दूर तलक फैले तो थे उसकी यादों के काले साये
मगर धूप का कहीं नाम ओ निशान तक ना था
घर के हर कोने में गूँज रही थी उसकी आहटें
आँख खोली तो फकत तस्वीर में उसका चेहरा था
अब ना वो कभी लौटेगा, रहेगी सिर्फ उसकी यादें
नाशाद, पर दिल रोज कहेगा वो हमसफ़र मेरा था
14 टिप्पणियां:
पहला अवसर ये आपकी रचना पढने का. पहली बार में ही अत्यंत प्रभावित हुई हूँ आपकी लेखनी से. भावनाएं अच्छी हैं. बहुत बधाई नरेशजी आपको.
गज़ब की ग़ज़ल है. बहुत सुन्दर. दिल की गहराइयों से बधाई और शुभ-कामना.
घर के हर कोने में गूँज रही थी उसकी आहटें आँख खोली तो फकत तस्वीर में उसका चेहरा था
दूर तलक फैले थे उसकी यादों के साए. बस इस एक पंक्ति ने ही जान ला दी पूरी ग़ज़ल में. बहुत अच्छी ग़ज़ल.
मुझे सबसे अच्चा ये शेर लगा -
उसके जाने के बाद दिल तो बहुत रोया
मगर आंखों में उसकी एक आंसू ना था
यूँ पूरी ग़ज़ल बहुत ही अच्छी है. घणी खम्मा
waah bahut khoob sir....
काफी अच्छी ग़ज़ल है. दिल रोज कहेगा वो हमसफ़र मेरा था.
बे चराग गलियों में उसकी आवाजें तो थी
दरीचों से झाँका मगर गलियों में कोई न था
क्या बात है. बहुत ही खूब.
बहुत ही दर्द से भरी हुई ग़ज़ल है. आपने बहुत अच्छी लिखी है.
नरेशजी; सभी शेर बहुत अच्छे हैं. घर के हर कोने में गूँज रही थी उसकी आहटें .... इस शेर में एक अलग ही बात है.
Bahut achchi gazal. Bahut shubh-kamana.
भाईजान, बहुत बढ़िया ग़ज़ल है. एक एक शेर को जैसे जैसे पढ़ती चली गई और उसमे खोती चली गई.
बेहद सुन्दर. अत्यंत ही मनभावन ग़ज़ल.
बहुत गहराई तक उतरने वाली ग़ज़ल. कान्ग्रेटस नाशाद जी ,
पुन: धन्यवाद और शुभ-कामना. आपकी रचना बहुत प्रशंसनीय है.
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