अब और तुम्हें क्या चाहिए
रंग गया मैं तेरे रंग में अब और तुम्हें क्या चाहिए
बसा लिया तुम्हें पलकों में अब और तुम्हें क्या चाहिए
राँझा होकर भी हीर हो गया अब और तुम्हें क्या चाहिए
तेरी याद में फ़कीर हो गया अब और तुम्हें क्या चाहिए
तेरा प्यार मेरी तकदीर हो गया अब और तुम्हें क्या चाहिए
मेरा चेहरा तेरी तस्वीर हो गया अब और तुम्हें क्या चाहिए
मेरा दिल तुम्हारा घर हो गया अब और तुम्हें क्या चाहिए
तुम्हें पाकर मैं सब हार गया अब और तुम्हें क्या चाहिए
14 टिप्पणियां:
क्या बात है नरेशजी, आज तो आप छा गए. बहुत ही प्यारी रचना.
राँझा होकर भी हीर हो गया अब और तुम्हें क्या चाहिए
तेरी याद में फ़कीर हो गया अब और तुम्हें क्या चाहिए
बहुत सुन्दर गीत है बधाई।
अच्छी ग़ज़ल है. और क्या चाहिये? ये अच्छा लगा.
बहुत सुन्दर. दिल में गहराई तक उतर गई.
तेरा प्यार मेरी तकदीर हो गया अब और तुम्हें क्या चाहिए
मेरा चेहरा तेरी तस्वीर हो गया अब और तुम्हें क्या चाहिए
बहुत जोरदार. इस शेर ने तो कहीं और पहुंचा दिया -
इतना जबरदस्त समर्पण. क्या मौहब्बत है. आनंद आ गाया.
बेहद शानदार. कुछ भी लिखूं शायद कम लगेगा मुझे.
आपकी गज़लें और कवितायें पढता हूँ. बहुत ही अच्छा लिखते हो आप. आप राजस्थानी में क्यूँ नहीं लिखते? आप लिखो सा. म्हने अच्छो लागेला.
बहुत प्यारी रचना.अब और क्या चाहिए
बोहराजी; बड़ी अच्छी ग़ज़ल लिखी है आपने. बेखुदी की हद को एक नया आयाम.
बड़े दिनों बाद आज वक्त मिला आपकी रचनाओं को पढने का. सभी एक से एक लिखी है आपने. बहुत बहुत बधाई भाई आपको. और क्या चाहिये - ये बहुत सुन्दर लगा.
सही लिखा है आपने नरेशजी. अब और क्या चाहिये जब इतना सब कुछ बदल दिया खुद को किसी की मौहबत में. बेहद सुन्दर. शुक्रिया.
बहुत सुन्दर रचनाएं होती है आपकी. सीधे दिल से लिखी हुई जो सीधे दिल में उतर जाती हैं. बड़ा अच्छा लगा.
waah dil ki kalam me pyaar ki syaahi bhar le likhi lagti hai....bahut khoob...
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