रविवार, 23 मई 2010














अब और तुम्हें क्या चाहिए

रंग गया मैं तेरे रंग में अब और तुम्हें क्या चाहिए
बसा लिया तुम्हें पलकों में अब और तुम्हें क्या चाहिए

राँझा होकर भी हीर हो गया अब और तुम्हें क्या चाहिए
तेरी याद में फ़कीर हो गया अब और तुम्हें क्या चाहिए

तेरा प्यार मेरी तकदीर हो गया अब और तुम्हें क्या चाहिए
मेरा चेहरा तेरी तस्वीर हो गया अब और तुम्हें क्या चाहिए

मेरा दिल तुम्हारा घर हो गया अब और तुम्हें क्या चाहिए
तुम्हें पाकर मैं सब हार गया अब और तुम्हें क्या चाहिए


14 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

क्या बात है नरेशजी, आज तो आप छा गए. बहुत ही प्यारी रचना.
राँझा होकर भी हीर हो गया अब और तुम्हें क्या चाहिए
तेरी याद में फ़कीर हो गया अब और तुम्हें क्या चाहिए

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सुन्दर गीत है बधाई।

Unknown ने कहा…

अच्छी ग़ज़ल है. और क्या चाहिये? ये अच्छा लगा.

Unknown ने कहा…

बहुत सुन्दर. दिल में गहराई तक उतर गई.

Unknown ने कहा…

तेरा प्यार मेरी तकदीर हो गया अब और तुम्हें क्या चाहिए
मेरा चेहरा तेरी तस्वीर हो गया अब और तुम्हें क्या चाहिए
बहुत जोरदार. इस शेर ने तो कहीं और पहुंचा दिया -

Unknown ने कहा…

इतना जबरदस्त समर्पण. क्या मौहब्बत है. आनंद आ गाया.

Unknown ने कहा…

बेहद शानदार. कुछ भी लिखूं शायद कम लगेगा मुझे.

Sumer Bishnoi ने कहा…

आपकी गज़लें और कवितायें पढता हूँ. बहुत ही अच्छा लिखते हो आप. आप राजस्थानी में क्यूँ नहीं लिखते? आप लिखो सा. म्हने अच्छो लागेला.

Unknown ने कहा…

बहुत प्यारी रचना.अब और क्या चाहिए

Guruinderpreet Singh ने कहा…

बोहराजी; बड़ी अच्छी ग़ज़ल लिखी है आपने. बेखुदी की हद को एक नया आयाम.

Unknown ने कहा…

बड़े दिनों बाद आज वक्त मिला आपकी रचनाओं को पढने का. सभी एक से एक लिखी है आपने. बहुत बहुत बधाई भाई आपको. और क्या चाहिये - ये बहुत सुन्दर लगा.

Unknown ने कहा…

सही लिखा है आपने नरेशजी. अब और क्या चाहिये जब इतना सब कुछ बदल दिया खुद को किसी की मौहबत में. बेहद सुन्दर. शुक्रिया.

Vasundhara Saanyaal ने कहा…

बहुत सुन्दर रचनाएं होती है आपकी. सीधे दिल से लिखी हुई जो सीधे दिल में उतर जाती हैं. बड़ा अच्छा लगा.

दिलीप ने कहा…

waah dil ki kalam me pyaar ki syaahi bhar le likhi lagti hai....bahut khoob...