सोमवार, 31 मई 2010

वे नहीं लौट कर आनेवाले 

चाहे भर ले आंखों में आंसू
चाहे दिल से आवाज़ लगा ले
दिल तोड़ कर जो गए हैं
वे नहीं लौट कर आनेवाले
चाहे लिख दे लाख संदेशे
चाहे हर मोड़ पर राह तक ले
जो गुजर गए हैं उन राहों से
वे नहीं लौट कर आनेवाले

चाहे खुदा से फरियादें कर ले
चाहे खुद को बरबाद कर ले
जो बसा चुके अपनी अलग दुनिया
वे नहीं लौट कर आनेवाले

चाहे मंदिर में दिए जला ले
चाहे सब कुछ न्यौछावर कर दे
जो हो गए हैं किसी और के
वे नहीं लौट कर आनेवाले



चाहे रिश्तों की याद दिला दे
चाहे वफाओं का वास्ता दे दे
जो हो बेवफा कहीं चल दिए है
वे नहीं लौट कर आनेवाले

चाहे फिर महफिलें सजा ले
चाहे फिर शम्मा जला ले
जो डरते हैं जलने से नाशाद
वे नहीं परवाना बननेवाले

13 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

अच्छी रचना. ये शेर बहुत अच्चा लगा -
चाहे फिर महफिलें सजा ले
चाहे फिर शम्मा जला ले
जो डरते हैं जलने से नाशाद
वे नहीं परवाना बननेवाले

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

आदरणीय नरेश जी,
भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिये...
विषय वस्तु को सही श्ब्दों में पेश करना ही...
रचनाकार की योग्यता का मापदंड़ होता है.
आपकी सभी रचनाओं में ये विशेषता देखने को मिलती है.
बधाई स्वीकार करें.

Unknown ने कहा…

जो गुज़र गए हैं उन राहों से वो नहीं लौटकर आनेवाले
क्या खूब बात है. सुन्दर

Dyna Bohra ने कहा…

Aapne achcha likha hai. Very good.

Unknown ने कहा…

बहुत उदासी है इसमें. लेकिन फिर भी अच्छी लगी.

Unknown ने कहा…

नरेशजी; आपके प्रेम-गीत अच्छे होते हैं. ऐसी लिखिए लेकिन कुछ कम. है ये बहुत ही अच्छी. आपको शुभ-कामना. आपके प्रेम-गीत का इंतज़ार रहेगा.

नरेश चन्द्र बोहरा ने कहा…

शाहिद भाई; आपकी इस टिप्पणी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया. मुझे बहुत ही अच्छा महसूस हो रहा है. मेरा हौसला बढेगा.

Tejveer ने कहा…

बेहद ही दर्द से भरी हुई और शाहिद भाई की बात का समर्थन करते हुए कि भावनाएं जबरदस्त उभरकर आई है. नरेशजी; ऐसा दर्द तभी निकलता है जब दिल में वास्तव में दर्द भरा हुआ हो. कोई युहीं ऐसी ग़ज़ल नहीं लिख सकता. शाहिद भाई भी शायद इस बात को मानेंगे.

Swati Mehta ने कहा…

काफी अच्छी रचना. मुझे बहुत पसंद आई. चाहे मंदिर में दीये जला ले -- यह पंक्ति तो दिल तक को भिगो गई.

Rameshwar Dayal ने कहा…

नरेश भाई; आप इतना दर्द कहाँ से लेकर आते हो? एक एक लाइन हजार आंसू ले आये ऐसी भाषावली प्रयुक्त हुई है. बस और कुछ मैं कहने कि स्थिति में नहीं हूँ. क्षमाप्रार्थी हूँ

Ra ने कहा…

अच्छी रचना !!! सच बात कही है !

manjul ramdeo ने कहा…

चाहे फिर महफिलें सजा ले
चाहे फिर शम्मा जला ले
जो डरते हैं जलने से नाशाद
वे नहीं परवाना बनन
jo apni duniya alag bana lete wo phir lot kar aane wale nahi
good

संजय भास्‍कर ने कहा…

नरेशजी; आपके प्रेम-गीत अच्छे होते हैं