शनिवार, 12 जून 2010

मैं तोहे पुकारूं  

सांवरे तोरी सुरतिया
ले गयी मोरी निंदिया
ना रहो मोसे दूर
ओ मोरे मन बसिया



बिन तोरे मोहे चैन ना आवे
जागूं सारी रैन मोरा जी घबरावे
दिन कट जावे पर कटे ना रतियाँ
ना रहो मोसे दूर ओ मोरे मन बसिया

कासे कहूँ अब मैं  मन की पीरा
लगूं  मैं बिरहन जैसे श्याम बिन मीरां
नीर बहे नैनों से जैसे कोई नदिया
ना रहो मोसे दूर ओ मोरे मन बसिया

कब से खड़ी राह मैं तोरी निहारूं
पवन संग दे आवाज मैं तोहे पुकारूं
ना आ सको तो भेजो अपनी कोई खबरिया
ना रहो मोसे दूर ओ मोरे मन बसिया

24 टिप्‍पणियां:

दिलीप ने कहा…

waah sirji bahutahi badhiya virah ki vedna ka sateek chitran

संजय भास्‍कर ने कहा…

क्या बात है... क्या कहें हम... लाजवाब.

Unknown ने कहा…

आज तो मन ही नहीं कर रहा कि इस बहुत ही सुन्दर गीत को पढना बंद करूँ. मैंने आपकी इतनी रचनाएँ पढ़ी है लेकिन ये गीत सबसे अलग और सुन्दर लगा. आपने इस गीत के द्वारा बीते जमाने में पहुंचा दिया. श्याम और मीरा के साथ हवा के संग अपनी पुकार भेजना बहुत ही सुन्दर लगा है. बधाईयाँ ही बधाईयाँ. नरेशजी ; बरखा के मौसम में आपका गीत सोने पे सुहागा हो गया है.

Unknown ने कहा…

आफरीन आफरीन नरेश भाईसाहब. क्या गीत रचा है!!!! काश यह गीत नुसरत फ़तेह अली खान साहब कि आवाज़ में हम सुन पाते. ऐसे बहुत कम गीत आजकल रचे जाते हैं. अगर कोई पढने को मिल भी जाय तो उसमे तुकबंदी साफ़ साफ़ नजर आ जाती है.लेकिन आपके गीत में एक विरहन कि पीड़ा बहुत सुन्दरता के साथ उभर कर आई है.

Unknown ने कहा…

बेहतरीन सर. मुझे मेरे घर कि याद आ गई. शायद घर के दरवाजे पर खड़ा कोई मुझे भी ऐसे याद कर आवाज दे रहा है. बहुत ही प्यारा गीत है.

Priyamwada Kanwar Sisodia ने कहा…

अरे भाईसा ! ये आपने हमें कहाँ पहुंचा दिया!! कोई गाँव. गाँव में एक गोरी. लम्बी खाली सड़क. तभी तेज हवा चलती है और वो गोरी आपका लिखा यही गीत गाने लग जाती है. सुन्दर अति सुन्दर.

Unknown ने कहा…

इतनी सुन्दर रचना को पढने के बाद ये सोचना पड़ता है कि टिप्पणी क्या लिखें. अच्छे शब्द भी तो मिलने चाहिये. बस हमारी बधाई स्वीकारे.

Manjeet Kaur ने कहा…

बहुत चंगा है जी. सही में बड़ा ही मन में बैठ जाने वाला विरह गीत है. कहीं कहीं सूफियाना टच भी है.

Anandita Thakur Singh ने कहा…

काफी अच्छी रचना है. रेडियो पर आनेवाले सुगम संगीत के किसी कार्यक्रम की याद आ गई. बहुत सुन्दर.

Swati Mehta ने कहा…

एक सुन्दर ठुमरी बन पड़ी है सुन्दर. बहुत बधाई.

Unknown ने कहा…

कुछ दिन पहले भी आपने एक ऐसा ही गीत लिखा था. ये गीत भी उतना ही सुन्दर बन गया है.

Unknown ने कहा…

अत्यंत ही मनमोहक रचना. बहुत सुन्दर. कई बार पढ़ा लेकिन दिल नहीं भरा.

Unknown ने कहा…

आप ने हर तरह की रचनाएं लिखी है लेकिन हर तरह की रचना पूरी लगती है., बस खुदा से दुआ है कि आपको लगातार लिखने की ताकत मिलती रहे. शुक्रिया भाईजान एक बहुत अव्वल दर्जे के गीत के लिए.

Unknown ने कहा…

एक बेहतरीन से भी बेहतर रचना. पढने में इतनी अच्छी लगी कि ये सोचने लग गई कि अगर ऐसी रचना को कोई सुर में गाये तो कितना अच्छा लगेगा.

Unknown ने कहा…

सोचना पड़ रहा है कि किण शबों में तारीफ करूँ. नरेशजी; बस दिल को भा गई आपकी यह रचना

Unknown ने कहा…

सुन्दर ! अति सुन्दर !! अत्यंत ही सुन्दर !!! अब इसके आगे का शब्द क्या लिखूं ? हर तरह से श्रेष्ट रचना. .

Unknown ने कहा…

!! अत्यंत ही सुन्दर !!!

Unknown ने कहा…

बड़ा ही सुन्दर वर्णन हुआ है हिज्र की तन्हाइयों का. धन्यवाद नरेशजी.
हर किसी को आप बीती लगे ऐसी रचना लिखी है आपने.

Unknown ने कहा…

प्रशंसा योग्य. आपने अत्यंत ही सुन्दर वर्णन किया है एक बिरहन के मन की पीड़ा को.

Unknown ने कहा…

हर तरह से श्रेष्ट रचना. बहुत ही अच्छी अनुभूति हुई इसे पढ़कर..

Unknown ने कहा…

हर एक पंक्ति ने विरहन के पीड़ा को दर्शाया है. बधाई इस सुन्दर विरह गीत के लिए नरेशजी.

Unknown ने कहा…

आपकी एक और रचना मुझे याद आ गई " मैं तो मीरा हो गई." वो ज्यादा बेहतर थी लेकिन विरह के भाव इसमें ज्यादा है. उसमे एक अलग प्रवाह था लेकिन इसमें दर्द की बरखा घनेरी बरसी है. बहुत मनभावन रचना है

Unknown ने कहा…

बड़ी ही मन को मोहने वाली कविता है. मैं तोहे पुकारूं . इसका शीर्षक ही अनायास मन को खेंच कर कहीं दूर ले जाता है..

Unknown ने कहा…

आपने घर में जब सभी सदस्यों को इसे पढकर सुनाया होगा तो कितना अच्छा लगा होगा सभी को. कभी हमें भी तो मौका मिले आपके सामने बैठकर आपके मुंह से आपकी ही रचनाएँ सुनने का. ये विरह गीत तो बड़ा ही अनुपम बन पडा है.