जिन्दगी में बहुत गम है और वक्त बहुत कम है. आइये महफ़िल सजाएं ग़ज़लों की . कविताओं की और कुछ देर के लिए ही सही हम थोडा वक्त निकालकर अपने को तरोताजा कर लें.
गुरुवार, 24 जून 2010
कब आओगे साजना
बदरा बरसे
जियरा तरसे
कब आओगे साजना
सूनी अंखियाँ
सूनी रतियाँ
सुना है घर आंगना
पपीहा बोले
मन मोरा डोले
अब तो आजा साजना
पलकें बिछाए
राह निहारूं
सपनों में भी
मैं तुझे पुकारूं
अब तो सुन ले साजना
ये सावन भी
बीत ना जाए
अपना मिलन फिर
कब हो पाए
एक बार तो मिल जा साजना
क्या बात है नरेशजी! आजकल बड़े अलग तरह के गीत लिखे जा रहे हैं !! लेकिन कुछ भी हो मुझे तो ये गीत बहुत ही अच्छे लग रहे हैं. आपको एक बार फिर से बहुत बहुत बधाई. एक और ऐसा गीत पढने को मिले अब यही इंतज़ार है.
इस गीत को पढने से पता है कैसा लगा !! जैसे विविध भारती पर सुगम संगीत के कार्यक्रम में कोई गीत बज रहा हो. सच में ये गीत बहुत ही अच्छा लिखा है आपने. किसी और को पसंद आये ना आये लेकिन मुझे बेहद पसंद आया है. तोहे पुकारूं भी बहुत अच्छा गीत था.
नाशाद साहब; जैसे ही आपने हमारी मिजाजपुर्सी की; देखिये हमारी बीमारी काफूर हो गई. आपका रूतबा ही ऐसा है. आज तो आपने बड़ा ही शानदार गीत लिखा है. हर शब्द सावन के मौसम को याद करता हुआ लगता है.
आप अपनी एक अलग शैली बना रहे हो.ये बड़ी अच्छी बात है. शुरू शुरू में आपकी ग़ज़लें ज्यादा हुआ करती थी. बाद में कवितायेँ और नज्मे जुडी और अब गीत भी.. मैं बहुत से रचनाकारों को पढता हूँ लेकिन जो बात मुझे ज्यादा अच्छी लगी आपके ब्लॉग के बारे में वो यह है कि बाकी रचनाकारों को रचनाकार ही ज्यादा पढ़ रहे है और टिप्पणीयाँ लिख रहे हैं; जबकि आपके ब्लॉग पर शुद्ध पाठक ही ज्यादा है.ये एक बहुत अच्छी बात है. जितने शुद्ध पाठक ब्लॉग से जुड़ेंगे उतना ही साहित्य मजबूती से प्रगति करेगा. आपको बहुत बहुत बधाई और सुनहरे भविष्य के लिए ढेर सारी शुभ-कामनाएं. एक और विशेष बात गौर करने लायक है नरेशजी कि हमारे पंजाब के बहुत पाठक आपके ब्लॉग से जुड़े हुए हैं. इसमें कोई राज़ है क्या नरेशजी??
नरेश सा;( आप जोधपुर से हो इसीलिए ) आप बहुत अच्छे साहित्यकार हो. आपकी कवितायें ; ग़ज़लें सभी अच्छी होती है. ये तो मुझे बहुत अच्छी लगी. पपीहा बोले ; मन मोरा डोले ; अब तो आजा साजना. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है.
जनाब नाशाद साहब; आपका अंदाज़ बहुत ही जुदा है औरों से. आप अपने दिल में उठने वाले ख्यालों को जिस तरह से ग़ज़लों / नज्मों में ढालते हो वो बहुत अच्चा लगता है. मेरी तरफ से आपको बहुत शुभ-कामना. आगे और भी उम्दा पढने को मिलेगी इसी उम्मीद के साथ.
जन्म भूमि - जोधपुर ; कर्म भूमि - मुंबई ; व्यवसाय - रेडिमेड वस्त्र ;
मैं लोगों को अच्छे साहित्य और पुस्तकों के संसार से फिर से जोड़ने का प्रयास मेरे ब्लॉग के माध्यम से कर रहा हूँ. सभी लोग मिलकर रहें और प्रेम से रहें. मनुष्य का जीवन जो केवल एक बार मिलाता है ; उस जीवन की हर सांस को हम चैन और ख़ुशी से जीयें.
13 टिप्पणियां:
क्या बात है नरेशजी! आजकल बड़े अलग तरह के गीत लिखे जा रहे हैं !! लेकिन कुछ भी हो मुझे तो ये गीत बहुत ही अच्छे लग रहे हैं. आपको एक बार फिर से बहुत बहुत बधाई. एक और ऐसा गीत पढने को मिले अब यही इंतज़ार है.
इस गीत को पढने से पता है कैसा लगा !! जैसे विविध भारती पर सुगम संगीत के कार्यक्रम में कोई गीत बज रहा हो. सच में ये गीत बहुत ही अच्छा लिखा है आपने. किसी और को पसंद आये ना आये लेकिन मुझे बेहद पसंद आया है. तोहे पुकारूं भी बहुत अच्छा गीत था.
सपनों में भी
मैं तुझे पुकारूं
अब तो सुन ले साजना
-- इस तरह की बातें ही आपकी विशेषता है नरेशजी. सुन्दर है ये रचना भी.
सावन का मौसम आ रहा है और उस पर आपका यह बहुत ही मनभावन गीत सोने पे सुहागा है. अतिसुन्दर.
छोटा सा लेकिन मधुर गीत. सावन का महीना अक्सर इस तरह के बिरह के गीतों को सुनने का मौसम होता है.
सूनी अंखियाँ
सूनी रतियाँ
सुना है घर आंगना
यह रचना बड़ी अच्छी लगी. पपीहा बोले; मन मोरा डोले.
नाशाद साहब; जैसे ही आपने हमारी मिजाजपुर्सी की; देखिये हमारी बीमारी काफूर हो गई. आपका रूतबा ही ऐसा है. आज तो आपने बड़ा ही शानदार गीत लिखा है. हर शब्द सावन के मौसम को याद करता हुआ लगता है.
आप अपनी एक अलग शैली बना रहे हो.ये बड़ी अच्छी बात है. शुरू शुरू में आपकी ग़ज़लें ज्यादा हुआ करती थी. बाद में कवितायेँ और नज्मे जुडी और अब गीत भी.. मैं बहुत से रचनाकारों को पढता हूँ लेकिन जो बात मुझे ज्यादा अच्छी लगी आपके ब्लॉग के बारे में वो यह है कि बाकी रचनाकारों को रचनाकार ही ज्यादा पढ़ रहे है और टिप्पणीयाँ लिख रहे हैं; जबकि आपके ब्लॉग पर शुद्ध पाठक ही ज्यादा है.ये एक बहुत अच्छी बात है. जितने शुद्ध पाठक ब्लॉग से जुड़ेंगे उतना ही साहित्य मजबूती से प्रगति करेगा. आपको बहुत बहुत बधाई और सुनहरे भविष्य के लिए ढेर सारी शुभ-कामनाएं. एक और विशेष बात गौर करने लायक है नरेशजी कि हमारे पंजाब के बहुत पाठक आपके ब्लॉग से जुड़े हुए हैं. इसमें कोई राज़ है क्या नरेशजी??
अच्छा लिखा है आपने. आपको बधाई
सचमुच कुछ अनुभव तो मौसम के साथ ही जुड़ा रहता है।
नरेश सा;( आप जोधपुर से हो इसीलिए ) आप बहुत अच्छे साहित्यकार हो. आपकी कवितायें ; ग़ज़लें सभी अच्छी होती है. ये तो मुझे बहुत अच्छी लगी. पपीहा बोले ; मन मोरा डोले ; अब तो आजा साजना. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है.
बला की खुबसूरत रचनाएँ होती है आपकी. आपकी इसी रचना की एक लाइन पलकें बिछाए राह निहारूं ; बस अब तो आपकी रचनाओं का इसी तरह से हम इंतज़ार किया करेंगे.
जनाब नाशाद साहब; आपका अंदाज़ बहुत ही जुदा है औरों से. आप अपने दिल में उठने वाले ख्यालों को जिस तरह से ग़ज़लों / नज्मों में ढालते हो वो बहुत अच्चा लगता है. मेरी तरफ से आपको बहुत शुभ-कामना. आगे और भी उम्दा पढने को मिलेगी इसी उम्मीद के साथ.
भाई नरेशजी
कब आओगे साजना काव्य रचना पढ़ी …
अच्छा प्रयास है ।
सावन का आगमन अच्छा होने के शगुन हैं ।
बधाई !
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
एक टिप्पणी भेजें