शनिवार, 10 सितंबर 2011


उठ कर चल दे जानिब-ए-मंजिल तू 

उठ कर चल दे जानिब-ए-मंजिल तू 
किसी ईशारे का इंतज़ार ना कर तू 
खुद ही तराश पहाड़ों में उसकी सूरत
किसी करिश्मे का इंतजार ना कर तू 

हर तरफ पथरीली राहें  ही मिलेगी
खुशनुमा राह का इंतजार ना कर तू 
बढा अपने हाथों को आस्मां की तरफ 
उसके आने का इंतजार ना कर तू  

लिख ले अपने हाथों में खुद अपनी किस्मत 
लकीरों को पढने का इंतज़ार ना कर तू
लिख कोई नई ग़ज़ल और पढ़ ले नाशाद 
शम्मां के जलने का इंतज़ार ना कर तू 

खुद ही रोशन हो सज जायेगी महफ़िल  
जब गूंजेगी तेरी आवाज़ हर तरफ 
ढूंढ कोई लाजवाब शेर औ ग़ज़ल नाशाद
किसी और के पढने का इंतज़ार ना कर तू  



7 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

वाह... सुन्दर रचना पढ़ कर आनंद आ गया. बधाई एवं धन्यवाद.

संजय भास्‍कर ने कहा…

KAI BAAR INZAAR KARNE KE CHAKKAR ME HUM PICHE REH JAATE HAI

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

खूबसूरत गजल।
और उससे भी खूबसूरत लद्दाख का फोटो।
ऊपर से बर्फबारी।
आनन्द आ गया।

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

खूबसूरत गजल।
और उससे भी खूबसूरत लद्दाख का फोटो।
ऊपर से बर्फबारी।
आनन्द आ गया।

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…





बहुत ख़ूब ! अच्छा लिख रहे हैं नरेश जी !
बधाई और बधाई :)


आपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !

-राजेन्द्र स्वर्णकार

S.N SHUKLA ने कहा…

लिख ले अपने हाथों में खुद अपनी किस्मत लकीरों को पढने का इंतज़ार ना कर तूलिख कोई नई ग़ज़ल और पढ़ ले

सुन्दर रचना , बधाई.

नरेश चन्द्र बोहरा ने कहा…

बहुत बहुत आभार , बस मेरा यही प्रयास रहता है कि दिल में जो भी ख़याल आता है उसे शब्दों में ढाल दूँ और किसी रचना का रूप दे दूँ.....आप सभी समय समय पर मार्गदर्शन करते रहिये...ताकि लेखनी में सुधार होता रहे....