मन अब इक जंगल सा हो गया
मन अब इक जंगल सा हो गया
सिर्फ यादों का बसेरा रह गया
नहीं रही अब तेरी आवाजें
तेरा अहसास ही रह गया
मन अब इक जंगल सा हो गया
बीते हुए वक्त से बादल
तेरी यादों की तरह बरसता सावन
तेरी बातों सी शीतल पवन
तेरा एहसास ही रह गया
मन अब इक जंगल सा हो गया
तेरी आहटों सी पगडंडीयाँ
तेरी मुस्कराहट से खिलते फूल
तेरे आँचल सी खिलती बहारें
तेरा एहसास ही रह गया
मन अब इक जंगल सा हो गया
तेरे खतों से बिखरे हुए सूखे पत्ते
तेरी हंसी की तरह बहती कोई नदी
मेरे मन की तरह ढलती हुई शाम
तेरा एहसास ही रह गया
मन अब इक जंगल सा हो गया
मन अब इक जंगल सा हो गया
= नरेश नाशाद
2 टिप्पणियां:
तेरी आहटों सी पगडंडीयाँ
तेरी मुस्कराहट से खिलते फूल
तेरे आँचल सी खिलती बहारें
तेरा एहसास ही रह गया ...
तेरा एहसास जाने कहां बहा के ले गया ... जाने वालों की यादें ही रहती हाँ बस आस पास बिखरी ...
बहुत ही मनमोहक और प्रेममयी रचना.....जवाब नहीं...लाजवाब।
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