बुधवार, 23 मई 2012


मन अब इक जंगल सा हो गया



मन अब इक जंगल सा हो गया 

सिर्फ  यादों का  बसेरा रह गया 

नहीं रही अब तेरी आवाजें 

तेरा अहसास ही रह गया 

मन अब इक जंगल सा हो गया 



बीते हुए वक्त से बादल 

तेरी यादों की तरह बरसता सावन 

तेरी बातों सी शीतल पवन 

तेरा एहसास ही रह गया 

मन अब इक जंगल सा हो गया 



तेरी आहटों सी पगडंडीयाँ
तेरी मुस्कराहट से खिलते फूल 

तेरे आँचल सी खिलती बहारें 

तेरा एहसास ही रह गया 

मन अब इक जंगल सा हो गया 



तेरे खतों से बिखरे हुए सूखे पत्ते 

तेरी हंसी की तरह बहती कोई नदी 

मेरे मन की तरह ढलती हुई शाम 

तेरा एहसास ही रह गया 

मन अब इक जंगल सा हो गया 


मन अब इक जंगल सा हो गया 



= नरेश नाशाद 



2 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

तेरी आहटों सी पगडंडीयाँ
तेरी मुस्कराहट से खिलते फूल
तेरे आँचल सी खिलती बहारें
तेरा एहसास ही रह गया ...

तेरा एहसास जाने कहां बहा के ले गया ... जाने वालों की यादें ही रहती हाँ बस आस पास बिखरी ...

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही मनमोहक और प्रेममयी रचना.....जवाब नहीं...लाजवाब।