दूरीयाँ ना कम हो सकी
चाहा तुमको हमने बहुत मगर
ये चाहत पूरी ना हो सकी
ख्वाब तेरे देखे हमने मगर
उनकी ताबीर ना मिल सकी
खुद को मिटा डाला मगर
दूरीयाँ ना कम हो सकी
आंसू सूख गए मगर
सिसकियाँ ना कम हो सकी
ख्वाब टूट गए मगर
उम्मीदें ना कम हो सकी
तुम से ना मिल सके मगर
मौहब्बत ना कम हो सकी
तुम ना समझ सके हमें
गलतफहमीयाँ ना दूर हो सकी
दिल में तो था बहुत कुछ मगर
जुबां ही बस कुछ कह ना सकी
तुम को मनाया बहुत मगर
कोशिशें ना सफल हो सकी
तुम को चाहा पाना हमने मगर
ये आरज़ू ना पूरी हो सकी
तुम्हें मान लिया खुदा हमने
पर बंदगी क़ुबूल ना हो सकी
सदायें तो दीं तुम को बहुत
पर तुम तक कभी ना पहुँच सकी
नाशाद रहे इस उम्मीद में
वो लौट आयेंगे एक दिन
उम्र गुज़र गई मगर
हिज्र की घडीयाँ ना ख़त्म हो सकी
शनिवार, 17 अप्रैल 2010
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9 टिप्पणियां:
bahut khub
shakher kumawta
kavyawani.blogspot.com/
खुद को मिटा डाला मगर दूरीयाँ ना कम हो सकी
आंसू सूख गए मगर सिसकीयाँ ना कम हो सकी
आपका आज तक का सबसे अच्छा शेर. बहुत जबरदस्त भाई साहब आज तो दिल खुश हो gaya.
Achchhee kavita ke liye meree
badhaaee aur shubh kaamna.
"खुद को मिटा डाला मगर
दूरीयाँ ना कम हो सकी"
खुबसुरत, बहुत ही खुबसुरत!!!
खुद को मिटा डाला मगर दूरियां ना कम हो सकी
आंसू सूख गए मगर सिसकीयाँ ना कम हो सकी
क्या दर्द उभर कर आया है इस शेर में. सारी हदें ख़त्म हो जाती है यह सोचने के बाद. आपने आज रुला दिया. मैं सच कह रही हूँ मेरी आँखें है ना भीग गई है इसे पढ़ते पढ़ते नरेशजी.
नाशाद साहब ,
दर्द की हदें मिट गई
पर मेरा दर्द ना कम हो सका
आंसू ख़त्म हो गए
बारिशों को कोई रोक ना सका
बहुत ही खूब लिखा है. जिसके दामन में दर्द ही दर्द भरा हो . ऐसा दामन लगता है . दीवानगी की हद तक ये ग़ज़ल पसंद आई मुझे.
खुद को मिटा डाला मगर
दूरीयाँ ना कम हो सकी
आंसू सूख गए मगर
सिसकीयाँ ना कम हो सकी
बहुत भावपूर्ण है. दिल में बहुत ख़याल आने लग जाते हैं. किसी को आखिर कर ऐसा क्यूँ कहना पड़ता है. कोई क्यूँ जुदा होता है . दो दिल क्यूँ नहीं मिल पाते जब भी वो सच्चे प्यार में होते हैं. मौहब्बत में नरेशजी अक्सर जुदाई ही क्यूँ लिखी होती है? क्या आप के पास इसका जवाब है? आपने इस बारे में इतना लिखा है आपने भी कुछ सोचा होगा कभी कि ऐसा क्यूँ होता है ? गलतफहमीयाँ क्यूँ पैदा हो जाती है? जनम जनम का साथ निभाने की कसमे खानेवाले क्यूँ मजबूर हो जाते हैं?
भाईसाहब ; आपके इस शेर ने तो आज भीतर तक रुला दिया. दिल में उतर गया. बहुत गहरी भावना है. ऐसा समर्पण कहाँ मिलेगा.
खुद को मिटा डाला मगर
दूरीयाँ ना कम हो सकी
आंसू सूख गए मगर
सिसकियाँ ना कम हो सकी
तुम ना समझ सके हमें
गलतफहमीयाँ ना दूर हो सकी
दिल में तो था बहुत कुछ मगर
जुबां ही बस कुछ कह ना सकी
इस शेर ने मुझे अपना गुजरा हुआ समय याद दिला दिया. मैं इस स्थिति से बहुत करीब से गुजरी हूँ. कुछ पलों के लिए ही सही मैं खो गई. कितनी भावनापूर्ण ग़ज़ल लिखी है आपने ! दिल कहीं और चला गया इसे पढ़कर
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