बचपन का गाँव
वो जो बचपन का गाँव जिसे हम कहीं दूर छोड़ आए
चलो आज फ़िर से उसी गाँव की तरफ़ चला जाए
वो जो पीपल जिसके साए में गुजरती थी हर दोपहर
चलो आज फ़िर उसी पीपल की छाँव में बैठा जाए
वो जो गाँव की गलीयाँ जहाँ हम दौड़ा करते थे दिन भर
चलो फ़िर उन्ही गलीयों में बेमतलब घूमा जाए
वो जो अमराइयाँ जिनमे हम चुराया करते थे आम हर रोज़
चलो आज फ़िर उन्ही अमराइयों की तरफ़ चला जाए
वो जो बचपन का साथी हर खेल में जिससे होता था झगडा
चलो आज चलकर उससे गले मिलकर रोया जाए
बहुत हो चुका बेदिल बदइंतजाम आज का शहर
चलो फ़िर लौटकर नाशाद अपने गाँव बसा जाए
20 टिप्पणियां:
इससे पहले भी आपकी गाँव पर कई रचनाएं पढ़ी है नरेशजी; लेकिन इस रचना ने तो हमें गाँव पहुँच ही दिया. सही है आज की भागदौड़ की जिंदगी में गाँव का माहौल ही हमें मन और तन की शांति दे सकता है.
आज तो कमाल हो गया. मैं कुछ लिखूं ये कम लगेगा. बेहतरीन है. शब्दों और चित्रों के मिश्रण ने गाँव का माहौल हमें घर बैठे ही दिखा दिया.
वो जो बचपन का साथी हर खेल में जिससे होता था झगडा
चलो आज चलकर उससे गले मिलकर रोया जाए
भाईसा, आज इन पंक्तियों ने मेरी आँखें भिगो दी. दिल को कुछ कमी महसूस होने लगी कि आखिर गाँव कितना प्यारा होता है और हम शहर में धूल फांक रहे हैं. बहुत सारी शुभ कामनाएं.
खूब बहुत खूब और बहुत ही खूब. नरेशजी; जवाब नहीं आज की ग़ज़ल का.
शुक्रिया इस ग़ज़ल के लिए.हमारा देश गाँवों का देश है.असली जिंदगी गाँव में है और गाँव हमारे दिलों में हैं. आपके दिल में कुछ ज्यादा है. ये आज की ग़ज़ल ने दिखाया है.
बोहराजी, कमाल का दर्द और प्रेम है आपके दिल में राजस्थान के लिए. ग़ज़ल तो अच्छी है ही ; फोटो तो और भी बढ़िया है. सोने पे सुहागा.
"वो जो पीपल जिसके साए में गुजरती थी हर दोपहर
चलो आज फ़िर उसी पीपल की छाँव में बैठा जाए""
बेहद शानदार. कुछ भी लिखूं शायद कम लगेगा मुझे.
बेहतरीन रचना, गाँव की याद आ गई. बहूत खूब!
मेरी रचना "नानी का आंगन" अवश्य पढ़ें.
http://premras.blogspot.com
सर, गाँव पर आप की लिखी हुई हर ग़ज़ल और कविता बहुत ही शानदार होती है. हमें उससे बहुत कुछ सीखने के लिए मिलता है. हमारी हार्दिक शुभ-कामनाएं स्वीकरें.
सुन्दर प्रस्तुति. गाँव का बहुत ही सजीव और सुन्दर चित्रण. शब्दों के साथ चित्रों का चयन हमेशा बहुत अच्छा रहता है और बहुत ही अच्छा लगता है.
एक बिलकुल अलग तरह की ग़ज़ल. गाँव की ओर फिर से लौटने का जज्बा बहुत अच्छा लगा.
इतनी सुन्दर रचना के लिए धन्यवाद नरेशजी. आपकी लिखावट में बहुत दर्द है हमारे गाँवों के लिए.
वो जो पीपल जिसके साए में गुजरती थी हर दोपहर
चलो आज फ़िर उसी पीपल की छाँव में बैठा जाए""
बेहद शानदार.
बहुत सारी शुभ कामनाएं.
एकदम से गाँव की तरफ खींच कर ले जाने वाली ग़ज़ल. नाशादजी; बहुत अच्छा लगा यह ग़ज़ल पढ़कर.
बेहद सुन्दर और खुद-ब-खुद बोलने वाले शब्द.
जनाब नाशाद साहब, कभी राजस्था से निकलकर काश्मीर कि हसीन वादीयों में भी आइये. मेरा मतलब है कि आप एक ग़ज़ल काश्मीर पर भी जरुर लिखें. ये मेरी गुजारिश आप जरुर पूरी करेंगे मुझे पूरी उम्मीद है. इस ग़ज़ल से एक बार फिर आपकी वो पहचान निकलकर आई है जो गाँवों को हमेशा जिंदा रखने में यकीन रखता है.
हर शब्द सजीव. गाँव जैसे सामने ही आ गया. बहुत ही खुबसूरत प्रस्तुति.
क्या खूब लिखा है नरेशजी! बहुत ही खूब.
bahut hi sunder sabdh rachna photo dekh kar to door bethe hi village ki sondhi mitti ki khusub mahsoos ho rahi h,
tarif ke liye sabdh kam ho rahe h
desh ki mool atmaa ki abhivykti hai, naresh ji.
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