बुधवार, 19 मई 2010





बचपन का गाँव

वो जो बचपन का गाँव जिसे हम कहीं दूर छोड़ आए
चलो आज फ़िर से उसी गाँव की तरफ़ चला जाए

वो जो पीपल जिसके साए में गुजरती थी हर दोपहर
चलो आज फ़िर उसी पीपल की छाँव में बैठा जाए

वो जो गाँव की गलीयाँ जहाँ हम दौड़ा करते थे दिन भर
चलो फ़िर उन्ही गलीयों में बेमतलब घूमा जाए

वो जो अमराइयाँ जिनमे हम चुराया करते थे आम हर रोज़
चलो आज फ़िर उन्ही अमराइयों की तरफ़ चला जाए

वो जो बचपन का साथी हर खेल में जिससे होता था झगडा
चलो आज चलकर उससे गले मिलकर रोया जाए

बहुत हो चुका बेदिल बदइंतजाम आज का शहर
चलो फ़िर लौटकर नाशाद अपने गाँव बसा जाए


20 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

इससे पहले भी आपकी गाँव पर कई रचनाएं पढ़ी है नरेशजी; लेकिन इस रचना ने तो हमें गाँव पहुँच ही दिया. सही है आज की भागदौड़ की जिंदगी में गाँव का माहौल ही हमें मन और तन की शांति दे सकता है.

Unknown ने कहा…

आज तो कमाल हो गया. मैं कुछ लिखूं ये कम लगेगा. बेहतरीन है. शब्दों और चित्रों के मिश्रण ने गाँव का माहौल हमें घर बैठे ही दिखा दिया.

Priamwada Kanwar Sisodia ने कहा…

वो जो बचपन का साथी हर खेल में जिससे होता था झगडा
चलो आज चलकर उससे गले मिलकर रोया जाए
भाईसा, आज इन पंक्तियों ने मेरी आँखें भिगो दी. दिल को कुछ कमी महसूस होने लगी कि आखिर गाँव कितना प्यारा होता है और हम शहर में धूल फांक रहे हैं. बहुत सारी शुभ कामनाएं.

Unknown ने कहा…

खूब बहुत खूब और बहुत ही खूब. नरेशजी; जवाब नहीं आज की ग़ज़ल का.

Unknown ने कहा…

शुक्रिया इस ग़ज़ल के लिए.हमारा देश गाँवों का देश है.असली जिंदगी गाँव में है और गाँव हमारे दिलों में हैं. आपके दिल में कुछ ज्यादा है. ये आज की ग़ज़ल ने दिखाया है.

Shakti Paal Singh Rathore ने कहा…

बोहराजी, कमाल का दर्द और प्रेम है आपके दिल में राजस्थान के लिए. ग़ज़ल तो अच्छी है ही ; फोटो तो और भी बढ़िया है. सोने पे सुहागा.

Unknown ने कहा…

"वो जो पीपल जिसके साए में गुजरती थी हर दोपहर
चलो आज फ़िर उसी पीपल की छाँव में बैठा जाए""
बेहद शानदार. कुछ भी लिखूं शायद कम लगेगा मुझे.

Shah Nawaz ने कहा…

बेहतरीन रचना, गाँव की याद आ गई. बहूत खूब!



मेरी रचना "नानी का आंगन" अवश्य पढ़ें.
http://premras.blogspot.com

Koel Kapoor ने कहा…

सर, गाँव पर आप की लिखी हुई हर ग़ज़ल और कविता बहुत ही शानदार होती है. हमें उससे बहुत कुछ सीखने के लिए मिलता है. हमारी हार्दिक शुभ-कामनाएं स्वीकरें.

Unknown ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति. गाँव का बहुत ही सजीव और सुन्दर चित्रण. शब्दों के साथ चित्रों का चयन हमेशा बहुत अच्छा रहता है और बहुत ही अच्छा लगता है.

Unknown ने कहा…

एक बिलकुल अलग तरह की ग़ज़ल. गाँव की ओर फिर से लौटने का जज्बा बहुत अच्छा लगा.

Unknown ने कहा…

इतनी सुन्दर रचना के लिए धन्यवाद नरेशजी. आपकी लिखावट में बहुत दर्द है हमारे गाँवों के लिए.

Unknown ने कहा…

वो जो पीपल जिसके साए में गुजरती थी हर दोपहर
चलो आज फ़िर उसी पीपल की छाँव में बैठा जाए""
बेहद शानदार.
बहुत सारी शुभ कामनाएं.

Unknown ने कहा…

एकदम से गाँव की तरफ खींच कर ले जाने वाली ग़ज़ल. नाशादजी; बहुत अच्छा लगा यह ग़ज़ल पढ़कर.

Unknown ने कहा…

बेहद सुन्दर और खुद-ब-खुद बोलने वाले शब्द.

Unknown ने कहा…

जनाब नाशाद साहब, कभी राजस्था से निकलकर काश्मीर कि हसीन वादीयों में भी आइये. मेरा मतलब है कि आप एक ग़ज़ल काश्मीर पर भी जरुर लिखें. ये मेरी गुजारिश आप जरुर पूरी करेंगे मुझे पूरी उम्मीद है. इस ग़ज़ल से एक बार फिर आपकी वो पहचान निकलकर आई है जो गाँवों को हमेशा जिंदा रखने में यकीन रखता है.

Sayani Vyas ने कहा…

हर शब्द सजीव. गाँव जैसे सामने ही आ गया. बहुत ही खुबसूरत प्रस्तुति.

Unknown ने कहा…

क्या खूब लिखा है नरेशजी! बहुत ही खूब.

manjul ramdeo ने कहा…

bahut hi sunder sabdh rachna photo dekh kar to door bethe hi village ki sondhi mitti ki khusub mahsoos ho rahi h,
tarif ke liye sabdh kam ho rahe h

sukirti ने कहा…

desh ki mool atmaa ki abhivykti hai, naresh ji.