तलाशती है आँखें
बीते लम्हे भूली बिसरी यादें
यही सब तलाशती है आँखें
अपनों की भीड़ में अक्सर
ख़ुद को तलाशती है ऑंखें
खुशीयाँ तलाशती है आँखें
तन्हाईयों खामोशियों में
आवाजें तलाशती है आँखें
हर बेगाने चेहरे में
अपनों को तलाशती है आँखें
बंद पड़े उस दरीचे में
किसी को तलाशती है आँखें
सूनी हो चुकी गलियों में
बिछुडे यार तलाशती है आँखें
हैवानों की इस दुनिया में
इंसान तलाशती है ऑंखें
दम तोड़ती हुई जिंदगी में
साँसें तलाशती है आँखें
टूटते हुए सभी रिश्तों में
करीबीयाँ तलाशती है आँखें
शाम ए ग़ज़ल है यारों
8 टिप्पणियां:
बहुत खूब ..जीवन भी तो एक तलाश ही है
अपनों की भीड़ में अक्सर खुद को तलाशती है आँखें.
नरेशजी; ये हकीकत है आज हम खुद भी नहीं पहचान पाते हैं. बहुत शानदार. आपके लिए दुआएं करती रहूंगी कि आप ऐसी ही अच्छी गज़लें लिखते रहे लिखते रहे.
बहुत ही सुन्दर. दम तोडती ज़िन्दगी में साँसें तलाशती है आँखें. अब क्या तरफ करूँ हर बार. हर रचना जानदार होती है.
ढेर सारी बधाईयाँ. एक एक पंक्ति के लिए शुभ-कामनाएं. इतनी खुबसूरत है कि ... बस पढ़ते रहो.
Aapki gazal bahut sundar hai. Zindgee ki aaj kya ahameeyat rah gaye hai; ye aapne bahut sateek likha hai.
अत्यंत सुन्दर. जीवन अब ऐसा ही रह गया है. बस तलाशते रहो और ....
वाह नरेशजी वाह. दिल भारी हो गया. क्या खूब कहा है आपने "तलाशती है ऑंखें" .
बंद पड़े उस दरीचे में किसी को तलाशती है आँखें
सूनी हो चुकी गलियों में बिछुडे यार तलाशती है आँखें
जय श्री कृष्ण भाईसाहब. आपने तो जोधपुर की तस्वीरें लगाकर मुझे रुला दिया. आपकी ग़ज़लें तो बहुत ही शानदार है लेकिन साथ लगी तस्वीरें उससे भी जोरदार. मैं भी जोधपुर से ही हूँ. आपकी तरह मुझे भी अपने शहर से बहुत प्यार और लगाव है.
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