मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010

जब से वो दूर हो गया

जब से वो दूर हो गया
यादों के सिलसिले हो गए
नींद किसी की हो गई
ख्वाब किसी के हो गए

जब कोई नामाबर आया
हौसले फिर बुलंद हो गए
उसके खतों में मेरे नाम से
फिर से चश्मतर हो गए

जब भी कहीं कोई तारा टूटा
दिल डूब कर बहुत रोया
उसकी कही बातों से नाशाद
ग़ज़लों के शेर हो गए

उसकी गलीयाँ उसकी महफ़िल
अब तो बस किस्से हो गए
उसकी आँखों के नूर से
राहों के चिराग रोशन हो गए

पहले पहल जब उसे देखा था
दिल में वो तभी से बस गए
जब उसने मुस्कुराकर देखा तो
हम बस उसी के हो गए

18 टिप्‍पणियां:

Deepak Saini ने कहा…

wah wah

Deepak Saini ने कहा…

wah wah

Akanksha Yadav ने कहा…

खूबसूरत अभिव्यक्ति...बधाई.
कभी 'शब्द-शिखर' पर भी पधारें !!

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार

संजय भास्‍कर ने कहा…

किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय नरेश चन्द्र बोहरा जी
नमस्कार !

कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई

संजय भास्‍कर ने कहा…

"माफ़ी"--बहुत दिनों से आपकी पोस्ट न पढ पाने के लिए ...

नरेश चन्द्र बोहरा ने कहा…

आप सभी का बहुत बहुत आभार. आप सभी की प्रतिक्रियाओं ने मुझे हमेशा अपने आपको और लिखने के लिए मजबूर किया है.

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सुन्दर व भावपूर्ण रचना है। बधाई स्वीकारें।

Unknown ने कहा…

नींद किसी की हो गई
ख्वाब किसी के हो गए
नाशाद साहब, मौहब्बत और जुदाई में यही होता है. नींद और ख्वाब दोनों खुद के नहीं रहते. आपने जुदाई को बहुत ही करीब से देखा लगता है. वरना इस तरह के अल्फाज लिखा जाना मुश्किल है.
बहुत ही खूब.

Unknown ने कहा…

खुदा ऐसी जुदाई ना दे. उसकी आँखों के नूर से राहों के चिराग रोशन हो गए .
क्या कल्पना की है नरेशजी आपने!!
बस इस शेर पर ही खुद को लुटा दिया समझो.

Unknown ने कहा…

बहुत सुन्दर
उसकी गलीयाँ उसकी महफ़िल
अब तो बस किस्से हो गए
उसकी आँखों के नूर से
राहों के चिराग रोशन हो गए

Unknown ने कहा…

बहुत अच्छी रचना नरेशजी, हर बार की तरह एक बार फिर दिल को हिला गई.

Unknown ने कहा…

जब कोई नामाबर आया
हौसले फिर बुलंद हो गए
उसके खतों में मेरे नाम से
फिर से चश्मतर हो गए
मौहब्बत और जुदाई को मिलाकर आपने बहुत अच्छा लिखा है. बस अब लगातार आप लिखते रहिये. बीच बीच में गायब ना हो जाना नरेशजी. आदत हो गयी है आपके ब्लॉग को करीब करीब रोजाना देखने की.

Unknown ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...बधाई.

Unknown ने कहा…

इसे बार बार पढने को जी चाहता है नरेशजी. कभी हुआ नहीं लेकिन आपकी रचना पढने के बाद ऐसा लगा जैसे मैं इस दौर से गुज़र चुकी हूँ. ये आपकी लेखनी का असर है कि पढनेवाला उसमे खो जाता है.

Unknown ने कहा…

नरेशजी आपने ब्लॉग पर इतना कम पोस्ट करना क्यूँ शुरू किया है?
न जाने कितने दिन तक मैं आपकी पुराणी रचनाओं को पढ़कर ही काम चलाती रही.
आज की रचना बहुत अलग है.

manjul ने कहा…

bahut hi sunder lines h,aapki koi bhi kavita baar baar padhne ko jee chata h.....